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औसत या फिर औसत से अधिक बुद्धिमत्ता तथा अध्ययन के पारंपरिक कक्षा अनुभव के बावजूद, बड़ी संख्या में बच्चे अधिगम अक्षमता (लर्निंग डिसेबिलिटी यानी सीखने की अक्षमता) से ग्रस्त हैं। विद्यालय की शैक्षणिक आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल रहने पर इनमें से ज्यादातर बच्चे कम उम्र में ही विद्यालय छोड़ देते हैं। यह उन्हें जीवन के ऐसे अवसरों से वंचित कर देता है, जिसका साक्षर व्यक्ति आनंद लेते हैं।
इस संदर्भ में यह पुस्तक दो प्रमुख उद्देश्यों को पूरा करती है: यह अधिगम अक्षमता के निवारण के सिद्धांतों और मौजूदा प्रयोगों पर पाठकों को नई जानकारियां प्रदान करती है तथा विभिन्न मामलों के अध्ययनों की एक श्रृंखला के माध्यम से हस्तक्षेप की दो प्रमुख तकनीकों, संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा और कंप्यूटर की मदद से निर्देश, की चिकित्सीय प्रभावशीलता को दर्शाती है। इस प्रकार, यह पुस्तक मौलिक अनुसंधान और इसके वास्तविक कार्यान्वयन के बीच के अंतर से उत्पन्न सिद्धान्त-प्रयोग की दूरी को मिटा देती है, और अनुभव आधारित प्रमाण के माध्यम से उपचार कार्यक्रमों को सशक्त वैज्ञानिक आधार प्रदान करती है।
- सी. आर. मुकुंदन द्वारा प्राक्कथन
- परिचय
- मस्तिष्क और न्यूरोडाइवर्सिटीः प्रयोगशाला से कक्षा तक
- पठन अक्षमता
- लेखन अक्षमता
- गणितीय अक्षमता
- सूचना प्रसंस्करण उपागम
- संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा
- कम्प्यूटर सहायित अनुदेशन
- प्रयोग
- विधि
- वैयक्तिक अध्ययनः आकलन और हस्तक्षेप
- परिणाम
- परिचर्चा
- सिंहावलोकन एवं भविष्य की दिशाएं
- परिशिष्ट
- संदर्भ ग्रंथसूची
एस.पी.के. जेना
एस.पी.के. जेना अनुप्रयुक्त मनोविज्ञान विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, दक्षिण कैंपस (नई दिल्ली) में प्रोफेसर और पूर्व शिक्षक-इन-चार्ज हैं। उन्होंने सेंटर ऑफ एडवांस्ड स्टडी इन साइकोलॉजी (भुवनेश्वर) से स्नातक किया; नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेस (बैंगलोर) से नैदानिक मनोविज्ञान में प्रशिक्षण और केंद्रीय मनोरोगविज्ञान संस्थान (रांची) से ... अधिक पढ़ें
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