लेखकों से निवेदन है कि अपनी रचनाएँ प्रकाशन के लिए भेजते वक़्त निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखें :
‘भारतीय समाजशास्त्र समीक्षा’ मूल रूप से लिखे गए समशास्त्रीय निबंधो का स्वागत करता है। निबंधो का (6000-8000 शब्दों से ज्यादा नहीं) पृष्ठ के एक तरफ मुद्रित होना, पंक्तियों के बीच दोहरी जगह के साथ पृष्ठ के चारो तरफ बराबर हाशिया होना आवश्यक है। निबंधे के साथ (100 शब्दों से ज्यादा नहीं) उसका सामान्य सारांश भी संलग्न होना चाहिए।
आलेख में सामग्री को इस क्रम में व्यवस्थित करें : आलेख का शीर्षक, लेखकों के नाम, पते और ई-मेल, लेखकों का परिचय, सारसंक्षेप (abstract), परिचर्चा, निष्कर्ष/सारांश, आभार (यदि आवश्यक हो तो) और संदर्भ।
सारसंक्षेप : सारसंक्षेप (Abstract) में लगभग 100-150 शब्द होने चाहिए तथा इसमें आलेख के मुख्य तर्कों का संक्षिप्त ब्योरा होना चाहिए। साथ ही 4-6 मुख्य शब्द (keyword) भी चिह्नित करें। आलेख का शीर्षक, सारसंक्षेप और मुख्य शब्द अंग्रेज़ी में भी भेजें।
आलेख का पाठ : इस भाग में लगभग 6000-8000 शब्द होने चाहिए, जिसमें सारणी, ग्राफ इत्यादि सम्मिलित हैं।
टाइप : कृपया अपना आलेख टाइप करके वर्ड और पीडीएफ़ दोनों ही फ़ॉर्मेट में भेजें। टाइप के लिए ‘कोकीला’ फॉन्ट का इस्तेमाल करें। इससे ग़लतियों की संभावना कम होगी। विशेष परिस्थितियों को छोड़ कर हस्तलिखित आलेख स्वीकार नहीं किए जाएँगे।
अंक : सभी अंक रोमन टाइपफ़ेस में लिखें। 1-9 तक के अंकों को शब्दों में लिखें बशर्ते कि वे किसी ख़ास परिमाण को न सूचित करते हों जैसे 2 प्रतिशत या 2 किलोमीटर।
तालिका और ग्राफ : तालिका के लिए वर्ड में तालिका बनाने की दी गई सुविधा का इस्तेमाल करें या उसे excel में बनाएँ। हर ग्राफ की मूल एक्सेल कॉपी या जिस सॉफ्टवेयर में उसे तैयार किया गया हो उसकी मूल प्रति अवश्य भेजें। सभी तालिका और ग्राफ को एक स्पष्ट संख्या और शीर्षक दें। आलेख के मूल पाठ में तालिका और ग्राफ की संख्या का समुचित जगह पर उल्लेख (जैसे देखें तालिका 1 या ग्राफ 1) अवश्य करें।
चित्र : सभी चित्र का रिजोल्यूशन कम-से-कम 300 डीपीआई/1500 पिक्सेल होना चाहिए। अगर उसे कहीं और से लिया गया हो तो जरूरी अनुमति लेने की जिम्मेदारी लेखक की होगी।
वर्तनी : किसी भी वर्तनी के लिए पहली और प्रमुख बात है एकरूपता। एक ही शब्द को अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग तरीके से नहीं लिखा जाना चाहिए। इसमें प्रचलन और तकनीकी सुविधा दोनों का ही ध्यान रखा जाना चाहिए।
पूर्णविराम का इस्तेमाल करें फुलस्टॉप का नहीं।
नासिक उच्चारण वाले शब्दों में आधा न् या म् की जगह बिंदी / अनुस्वार का प्रयोग करें। मसलन, सम्बन्ध के बजाय संबंध, सम्पूर्ण की जगह संपूर्ण लिखें।
अनुनासिक उच्चारण वाले शब्दों में चंद्रबिंदु का प्रयोग करें। मसलन, यहाँ, वहाँ, जाएँ, जाएँगे, महिलाएँ, आदि-आदि। कई बार सिर्फ़ बिंदी के इस्तेमाल से अर्थ बदल जाते हैं, इसलिए इसका विशेष ध्यान रखें। मसलन, हंस और हँस।
जहाँ संयुक्ताक्षर मौजूद हों और प्रचलन में हों वहाँ उन संयुक्ताक्षरों का भरसक इस्तेमाल करें।
महत्त्व और तत्त्व लिखें, महत्व या तत्व नहीं।
जिस अक्षर के लिए हिंदी वर्णमाला में अलग अक्षर मौज़ूद हो उसी अक्षर का इस्तेमाल करें। मसलन, गये, गयी की जगह गए, गई लिखें।
कई मामलों में दो शब्दों को पढ़ते समय मिलाकर पढ़ा जाता है उन्हें एक शब्द के रूप में ही लिखें। मसलन, घरवाली, अख़बारवाला, सब्ज़ीवाली, गाँववाले, ख़ासकर, इत्यादि।
पर कई बार दो शब्दों को मिलाकर पढ़ने के बावजूद उन्हें जोड़ने के लिए हाइफन का प्रयोग होता है। ख़ासकर –सा या –सी और जैसा या जैसी के मामले में। मसलन, एक-सा, बहुत-सी, भारत-जैसा, गांधी-जैसी, इत्यादि।
अरबी या फ़ारसी से लिए गए शब्दों में जहाँ मूल भाषा में नुक़्ते का इस्तेमाल होता है वहाँ नुक़्ता ज़रूर लगाएँ। ध्यान रहे कि क़, ख़, ग़, ज़, फ़ वाले कई शब्दों में नुक़्ते का इस्तेमाल होता है। मसलन, क़लम, क़ानून, ख़त, ख़्वाब, ख़ैर, ग़लत, ग़ैर, इजाज़त, इज़ाफ़ा, फ़र्ज़, सिर्फ़।
उद्धरण : पाठ के अंदर उद्धृत वाक्यांशों को दोहरे उद्धरण चिह्न (“ ”) के अंदर दें। अगर उद्धृत अंश दो-तीन वाक्यों से ज़्यादा लंबा हो तो उसे अलग पैरा में दें। ऐसा उद्धृत पैराग्राफ अलग नज़र आए इसके लिए उसके पहले और बाद में एक लाइन का स्पेस दें और पूरे पैरा को इंडेंट करें और उसके टाइप साईज़ को छोटा रखें। उद्धृत अंश में लेखन की शैली और वर्तनी में कोई तब्दीली या सुधार न करें।
पादटिप्पणी और हवाला (साईटेशन) : सभी पादटिप्पणियों और हवालों (साईटेशन) के लिए मूल पाठ में superscript में सिलसिलेवार संख्या दें और हर पृष्ठ के नीचे क्रम में दें। इसके लिए माइक्रोसॉफ्ट वर्ड के तहत उपलब्ध insert footnote की सुविधा का इस्तेमाल कर सकते हैं। वेबसाईट के मामले में उस तारीख़ का भी ज़िक्र करें जब आपने उसे देखा हो। मसलन, पाठ1 1. मनोरंजन महंती, 2002, पृष्ठ और हर हवाला के लिए पूरा संदर्भ आलेख के अंत में दें।
संदर्भ : इस सूची में किसी भी संदर्भ का अनुवाद करके न लिखें, अर्थात संदर्भो को उनकी मूल भाषा में ही रहने दें। सभी संदर्भों को हिंदी भाषा में लिखें तथा इन्हें हिंदी वर्णमाला के अनुसार सूचीबद्ध करें।
लेखक/लेखकों के नाम (वर्ष): किताब का नाम (अनुवादक), प्रकाशक, स्थान।
किसी संपादित किताब की सूरत में
लेखक/लेखकों के नाम (वर्ष): “आलेख का शीर्षक,”किताब का नाम (संपादक), प्रकाशक, स्थान; पृष्ठ।
किसी जरनल/पत्रिका में छपे लेख के मामले में
लेखक/लेखकों के नाम (वर्ष): “लेख का शीर्षक,”पत्रिका / जरनल का नाम, वाल्यूम(अंक): पृ., स्थान।
किसी वेबसाइट का हवाला देने पर
वेबसाइट का पता, देखा (तारीख़, महीना, वर्ष)
मौलिकता : ध्यान रखें कि आलेख किसी अन्य जगह पहले प्रकाशित नहीं हुआ हो तथा न ही अन्य भाषा में प्रकाशित आलेख का अनुवाद हो। यानी आपका आलेख मौलिक रूप से लिखा गया हो।
कोशिश होगी कि इसमें शामिल ज़्यादातर आलेख मलू रूप से हिंदी में लिखे गए हों। पर ऐसा नहीं कि अंग्रेज़ी समेत दूसरी भारतीय भाषाओं में चल रहे समाज वैज्ञानिक चिंतन पर हमारी नज़र नहीं होगी। बल्कि हम दूसरी भाषाओं से अनुवाद को भी समुचित जगह देंगे। हाँ, अनूदित आलेखों का अनुपात किसी भी सूरत में 50 प्रतिशत से ज़्यादा नहीं होगा। अनुवाद के चयन में भी कोशिश होगी कि ये लेख मौलिक रूप से सामाजिक के लिए लिखे गए हों। लेखक बाद में उसे मूल भाषा में समुचित आभार और संदर्भ के साथ प्रकाशित कर सकते हैं।
लेखकों से अपेक्षा होगी कि वे दूसरे किसी लेखक के विचारों और रचनाओं का सम्मान करते हुए ऐसे हर उद्धरण के लिए समुचित हवाला/संदर्भ देंगे। अकादमिक जगत के भीतर बिना हवाला दिए नकल या दूसरों के लेखन और विचारों को अपना बताने (प्लेजियरिज्म) की बढ़ती प्रवृत्ति को देखते हुए लेखकों को इस बारे में विशेष ध्यान देना होगा।
समीक्षा और स्वीकृति : प्रकाशन के लिए भेजी गयी रचनाओं पर अंतिम निर्णय लेने के पहले संपादकमंडल दो समीक्षकों की राय लेगा, अगर समीक्षक आलेख में सुधार की माँग करें तो लेखक को उन पर ग़ौर करना होगा।
संपादन व सुधार का अंतिम अधिकार संपादकगण के पास सुरक्षित है।
कॉपीराइट : प्रकाशन के लिए स्वीकृत रचनाओं का कॉपीराइट लेखक के पास ही रहेगा पर हर रूप में उसके प्रकाशन का अधिकार सीएसडी और सेज के पास होगा। वे अपनी प्रकाशित आलेख का इस्तेमाल अपनी लिखी किताब या ख़ुद संपादित किताब में आभार और पूरे संदर्भ के साथ कर सकते हैं। किसी दूसरे द्वारा संपादित किताब में शामिल करने की रज़ामंदी देने के पहले उन्हें सीएसडी और सेज से अनुमति लेनी होगी।
लेखकगण अपनी रचनाएँ profvivekkumareditor.bss@gmail.com पर ईमेल द्वारा भेज सकते हैं।